सर्दियाँ लंबी और सख़्त थीं, बाहर भी और अनिया के दिल में भी। ये सिर्फ़ ठंडी हवा या धूसर आसमान की बात नहीं थी—बल्कि उसके संघर्षों का बोझ था। ज़िंदगी एक अंतहीन सर्दी की तरह लगने लगी थी। अकेले जय की परवरिश करना, करियर की अनिश्चितताओं से जूझना, और अपने पिता को खोने का दुःख सहना, सबने उसे एक ऐसी ठंड में लपेट लिया था जिससे वह बाहर नहीं निकल पा रही थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे बसंत, अपनी गर्माहट और नयापन लेकर, कभी नहीं आएगा।
एक ठंडी शाम को,
जब बाहर हल्की बर्फ
गिर रही थी, अनिया
खिड़की के पास बैठी
विचारों में खोई हुई
थी। उसके हाथों में
उसकी पसंदीदा चाय का कप
ठंडा हो चुका था,
और उसकी यादें और
चिंताएँ बाहर की सर्द
हवाओं की तरह उसके
मन में घूम रही
थीं। जय, जो टीवी
देख रहा था, थके
हुए अपनी आँखें मलते
हुए कमरे में आया।
"माँ,
आपको सो जाना चाहिए,"
जय ने नींद भरी
आवाज़ में कहा, पर
उसकी आवाज़ में चिंता थी।
"आप काफी देर से
यहाँ बैठी हैं।"
अनिया
ने अपने बेटे की
तरफ़ देखा और ज़बरदस्ती
मुस्कराई। "मैं ठीक हूँ,
बेटा। बस बहुत सारी
चीज़ों के बारे में
सोच रही थी।"
जय ने सिर टेढ़ा
करके जिज्ञासा से पूछा, "किस
चीज़ के बारे में?"
उसने
एक लंबी सांस ली
और बाहर बर्फ से
ढकी सड़कों की तरफ़ देखा।
"ज़िंदगी, जय। कभी-कभी
लगता है कि कितनी
भी कोशिश कर लूं, सब
कुछ वैसा ही रहता
है। ठंडा, भारी, जैसे सर्दी कभी
ख़त्म ही नहीं होगी।"
जय उसके पास बैठ
गया, उसका छोटा सा
हाथ उसकी बाँह पर
रख दिया। "लेकिन सर्दी हमेशा नहीं रहती, है
ना?"
अनिया
उसकी बातों की समझदारी से
हैरान थी। "तुम्हारा मतलब क्या है?"
जय हल्की सी मुस्कान के
साथ बोला, उसकी आँखों में
एक चमक थी। "जैसे
उस BTS गाने में होता
है जो आप हमेशा
सुनती हो—'स्प्रिंग डे'। उसमें कहा
है कि चाहे जितनी
ठंड हो, सर्दियों के
बाद बसंत ज़रूर आता
है। इसमें समय लग सकता
है, पर ठंड हमेशा
के लिए नहीं रहती,
माँ। सब कुछ बेहतर
हो जाएगा।"
अनिया
का दिल एक पल
के लिए कस गया,
और उसकी आँखों में
आँसू भरने लगे। उसने
उस गाने को कितनी
बार सुना था, पर
आज उसके बेटे की
सादगी भरी बातों ने
इस संदेश को पहली बार
उसके दिल तक पहुँचाया।
"चाहे
तुम्हारी सर्दी कितनी भी ठंडी और
अंधेरी क्यों न हो, बसंत
हमेशा पास ही होता
है।" गाने के शब्द
उसके दिमाग में गूँजने लगे,
और अनिया ने एक थकी
हुई सांस छोड़ी।
"तुम
बिल्कुल सही कह रहे
हो, जय," उसने फुसफुसाते हुए
कहा, उसकी आवाज़ में
आश्चर्य और आभार का
मिश्रण था। "हमें बस थोड़ी
और देर तक टिके
रहना है, और सब
कुछ बेहतर हो जाएगा।"
जय ने सिर हिलाया
और उसे कसकर गले
लगाया। "आप हमेशा मुझे
बहादुर बनने के लिए
कहती हो, माँ। अब
आपकी बारी है। हम
साथ में इस सर्दी
को पार कर लेंगे,
और जल्द ही सब
कुछ फिर से बसंत
जैसा हो जाएगा। आप
देखना।"
अनिया
ने उसे अपने गले
से लगाया, और उसके दिल
में एक नई उम्मीद
जाग उठी। तमाम चुनौतियों
और ठंड के बावजूद,
जय की बातों ने
उसके भीतर गर्माहट का
एक बीज बो दिया
था।
अगली
सुबह, बाहर की दुनिया
अब भी बर्फ से
ढकी हुई थी, लेकिन
अनिया हल्का महसूस कर रही थी।
वह रसोई में जाकर
नाश्ता बनाने लगी, और खुद
से एक धीमा गीत
गुनगुनाने लगी। बैकग्राउंड में
"स्प्रिंग डे" की हल्की धुन
बज रही थी, और
जय आँखें मलता हुआ मुस्कुराते
हुए रसोई में आया।
"गुड
मॉर्निंग, माँ!" उसने हँसते हुए
कहा, अभी भी आधी
नींद में, पर खुश।
अनिया
ने उसके बालों को
सहलाते हुए मुस्कुराया। "गुड मॉर्निंग,
सोने की गुड़िया। नाश्ते
के लिए तैयार हो?"
जय ने जम्हाई लेते
हुए सिर हिलाया। "क्या
हम आज पैनकेक खा
सकते हैं?"
"ज़रूर,"
उसने हँसते हुए कहा। "लेकिन
तुम्हें मेरी मदद करनी
होगी।"
जब वे साथ में
खाना बना रहे थे,
जय ख़ुशी-ख़ुशी बातें कर रहा था,
और अनिया को हफ्तों में
पहली बार इतना हँसते
हुए महसूस हुआ। रसोई में
बैटर की सिजलिंग, हंसी
की आवाज़ें, और वह गाना
गूँज रहा था जो
अब उनके लिए उम्मीद
का प्रतीक बन चुका था।
"माँ,
आपको पता है मुझे
बसंत क्यों पसंद है?" जय
ने ध्यान से पैनकेक पलटते
हुए पूछा।
अनिया
ने मुस्कराते हुए पूछा, "क्यों?"
"क्योंकि
ऐसा लगता है जैसे
दुनिया फिर से शुरू
हो रही हो," उसने
सोचते हुए कहा। "फूल
फिर से उगते हैं,
दिन लंबे हो जाते
हैं, और सब कुछ
नया-नया लगता है।
मुझे लगता है कि
जब बसंत आएगा, हम
भी नए महसूस करेंगे,
है ना?"
अनिया
का दिल उसके शब्दों
से गर्म हो गया।
"हाँ, जय," उसने नरमी से
कहा, उसकी आवाज़ में
भावनाओं का सैलाब था।
"हम ज़रूर करेंगे। चाहे चीज़ें कितनी
भी मुश्किल हों, हमारे पास
हमेशा एक नया शुरूआत
होती है। बसंत हमारे
लिए भी आएगा।"
जय मुस्कुराया, अपनी माँ के
जवाब से संतुष्ट। "फिर
हमें ज़्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए,
है ना? अगर चीज़ें
अभी मुश्किल हैं, तो भी
कोई बात नहीं। ये
बस बर्फ के पिघलने
का इंतज़ार करने जैसा है।"
अनिया
ने मन ही मन
एक गहरी शांति महसूस
की। "बिल्कुल, बेटा। ये बस बर्फ
के पिघलने का इंतज़ार करने
जैसा है।"
जब उन्होंने नाश्ता ख़त्म किया, तो अनिया ने
खिड़की से बाहर देखा,
जहाँ वही सफेद बर्फ
की चादर फैली हुई
थी जिसे उसने पिछली
रात देखा था। लेकिन
इस बार, उसे ठंड
से घिरी हुई महसूस
नहीं हो रही थी।
इसके बजाय, वह एक शांत
इंतज़ार महसूस कर रही थी।
बर्फ पिघलेगी, फूल खिलेंगे, और
उसी तरह, वह और
जय भी अपने बसंत
को पाएँगे। साथ में, वे
इस सर्दी से गुज़र जाएँगे।
पहली
बार, उसे ऐसा लगा
कि बेहतर दिनों की गर्माहट उससे
कहीं ज़्यादा क़रीब है जितना उसने
सोचा था। गाने, बेटे
की बातों, और उनके प्यार
ने उसे याद दिलाया
कि हर लंबी, कठिन
सर्दी के बाद, बसंत
हमेशा इंतज़ार करता है—अपने
साथ नया जीवन, उम्मीद,
और नए शुरूआतों का
वादा लेकर आता है।
No comments:
Post a Comment